क्या गृहस्थ आगम अध्ययन कर सकते हैं? - एक विमर्श
प्रत्येक धर्म-परम्परा में धर्म-ग्रन्थ या शास्त्र का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है, क्योंकि उस धर्म के दार्शनिक सिद्धान्त और आचार व्यवस्था दोनों के लिए 'शास्त्र' ही एकमात्र प्रमाण होता है. हिन्दूधर्म में वेदों का, बौद्धधर्म में त्रिपिटक का, पारसीधर्म में अवेस्ता का, ईसाईधर्म में बाइबल का और इस्लाम धर्म में कुरान का जो स्थान है, उससे भी बढ़ कर स्थान जैनधर्म में आगम साहित्य का है. जैनो के लिए आगम जिनवाणी है , आप्तवचन है और धर्म-दर्शन एवं साधना का आधार है. परन्तु एक प्रश्न उभर कर आता है - क्या गृहस्थ (श्रावक- श्राविकाऐं) आगम ग्रंथो को पढ़ कर उनका अभ्यास कर सकते हैं? यद्यपि श्वेतांबर स्थानकवासी और श्वेतांबर तेरापंथी परंपरा में श्रावक -श्राविकाओं को आगम पढ़ने की अनुमति है और उन्हें कंठस्थ करने की परंपरा भी है, परन्तु वर्तमान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा में गृहस्थों को आगम ग्रंथ पढ़ने की अनुमति नहीं है (मात्र श्री दशवैकालिक सूत्र के प्रथम चार अध्ययन तक ही पढ़ने की अनुमति है). पूज्य साधु भगवंतो को भी वर्षो की साधना और योगोद्वहन (जोग) [1] के पश्चात ही इन पवित्र आगम ग्रंथो को पढ़ने का अधिकार