पर्युषण महापर्व - इतिहास के झरोखे से

जैन दर्शन में पर्वों को लौकिक पर्व और आध्यात्मिक पर्व में विभाजित किया गया है. पर्युषण महापर्व की गणना आध्यात्मिक पर्व के रूप में की गई है और इसे सबसे पवित्र पर्व का दर्जा दिया गया है. आगम छेदसूत्र - श्री आयारदशा (दशाश्रुतस्कंध) एवं श्री निशीथ सूत्र आदि आगम ग्रन्थों में पर्युषण के मूल प्राकृत रूप " पज्जोसवण " शब्द का प्रयोग हुआ है. वर्तमान समय में, पर्युषण पर्व को श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संप्रदाय के तपागच्छ और खरतरगच्छ में श्रावण वदी १२ से भाद्रपद शुक्ल ४ तक मनाया जाता है और मूर्तिपूजक संप्रदाय के अंचलगच्छ, पार्श्वचंद्रगच्छ एवं अमूर्तिपूजक सम्प्रदाय के स्थानकवासी और तेरापंथ में श्रावण वदी १३ से भाद्रपद शुक्ल ५ तक मनाया जाता है. पर्युषण पर्व के ८वे दिन, अर्थात् सवंत्सरी की आराधना द्वारा, पुरे वर्ष में किये गए पापो का परायश्चित करने के साथ-साथ विश्व के समस्त जीवो से क्षमायाचना करना यह पर्व का मुख्य अंग है. परन्तु अफ़सोस की बात है की, आज मुख्यत्व: जैनो को इस महापर्व के इतिहास के विषय में कुछ खास पता नहीं है; इसीलिए इस लेख के द्वारा पर्युषण के इतिहास पर कुछ प्रकाश डालने का प्रयास